Diya Jethwani

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लेखनी कहानी -02-Jul-2023... एक दूजे के वास्ते... (6)

रश्मि ने फोन रखा ही था कि डोर बेल बजी, रश्मि दरवाजा खोलने गई। 


दरवाजा खोलते ही रश्मि  मुस्कुरा दी......। दरवाजे पर ट्युशन क्लासेस के बच्चे खड़े थे.....। रश्मि के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने के लिए अलका के बाद ये बच्चे ही तो थे...। रश्मि उनकों अपने कमरे में ले गई, और बच्चों को पढा़ने में व्यस्त हो गई। वो अपने काम में इतना खो गई कि खाने का भी ध्यान नही रहा.....। 
घड़ी में शाम के 5 बज रहें थे.....। क्लासेस खत्म होते ही उसने हर रोज़ की तरह बच्चों को किस की ओर उनको दरवाजे तक संभलकर जाने की हिदायत देते हुए छोड़ आई....। उसके बाद वो किचन में गई ओर शाम की चाय बनाने लगी.....। चाय लेकर वो अपनी माँ के कमरे में गई और दोनों को चाय देकर जा ही रही थी कि उसके पापा ने उसे रोक दिया....। 

रश्मि रूको, हमें तुमसे कुछ बात करनी है.....। 
बैठो इधर.....। 

रश्मि उनके पास रखी कुर्सी पर बैठ गई और बोली :- क्या हुआ पापा.....? 


अभी हमारी बात तुम्हारी बहन से हुई थी.....। उसे तुम्हारी माँ की बहुत चिंता हो रही है .......इसलिए उसने एक डाक्टर बताया है जो कैंसर का स्पेशलिस्ट हैं.......। मुझे और तुम्हारी माँ को भी लगता है कि तुम्हें एक बार वहाँ जाकर उनसे मिल लेना चाहिए। 


ठीक है पापा जैसा आप कहे। मैं कल ही मम्मी को वहाँ ले जाउंगी.....। आप मुझे उनका नाम,पता़ और फोन नम्बर बता दिजिए। 


 पहले मेरी पुरी बात तो सुन लो। 
डाक्टर यहाँ नहीं है....। वो दिल्ली में है.....। तुम्हें दिल्ली जाना होगा.....। 

रश्मि चोंकते हुए... दिल्ली......! 

 हां दिल्ली.....। 


लेकिन पापा मैं तो कभी अपने शहर से बाहर भी नहीं गई....। मैं इतने बड़े शहर दिल्ली कैसे जाउंगी, और फिर पापा मेरे कोलेज में जो खेल होने वाले है कल से उनकी भी  प्रैक्टिस शुरू हो रही है तो ऐसे में शहर से बाहर कैसे जा पाउंगी.....!! 
कल ही तो आपने मुझे उसकी परमिशन दी थी फिर अचानक से..... 


किशन उसकी बात काटते हुए बोला... तुझे अपनी माँ से ज्यादा खेलने की पड़ी है.....। अगर मैं आज बाहर आने जाने की स्थिति में होता तो ......तुझसे कभी कहता भी नहीं।
 हाँ मैने ही तुझे परमिशन दी थी, लेकिन उस वक़्त ये सब बात नहीं थी, और अगर फिर भी तु हमारा इतना ही मानती है तो अभी मैं ही तुझे मना करता हूँ। 


लेकिन पापा इतने बड़े शहर में मैं अकेले नहीं जा पाउंगी। मैं कोलेज भी कभी अकेले नहीं जा पातीं पापा फिर दिल्ली कैसे... 

किशन फिर से उसकी बात काटते हुए :- अगर मैं या तेरी बहन जा पाते या तेरे भाई आ पाते तो तुझसे कभी कहते भी नहीं.....।वैसे भी तेरे खेल तो एक महीने बाद ही होने वाले है ना....।और दिल्ली तुझे हमेशा के लिए नहीं जाना है 10-15 दिन में वापस आ ही जाएगी......फिर आकर भी तो खेल सकतीं हो......। सच ही कहा था सोनल ने पराया खुन पराया ही रहता है....। आज तेरी सगी माँ होती तो इतने बहाने नहीं बनातीं......। 

रश्मि-ऐसा नहीं है पापा...। मुझे खेलों की या पढ़ाई की फिक्र नही है बस अकेले जाने का डर है। 


 ठीक है अगर तु नही जाना चाहतीं है तो कोई बात नहीं, मैं खुद चला जाता हूँ......। फिर जो होगा देखा जाएगा....। 
 

 नहीं पापा, आप कहीं नहीं जाएंगे। आपकी सेहत ठीक नहीं है। मैं चलीं जाउंगी। मैं कल कोलेज जाकर भी अपना नाम वापस ले लुंगी क्योंकी वापस आने के बाद इतने कम वक़्त में प्रैक्टिस नहीं हो पाएगी। 


 ठीक है.....। वहाँ रहने के लिए मैं  मोहन से बात कर लेता हूं.....। वो मेरा सगा न सही पर भाई जैसा है और दिल्ली में ही रहता है तो रहने का इंतजाम तो कर ही लेगा.....। 
 

ठीक है पापा......। मैं अभी थोड़ी देर अलका से मिल कर आती हूँ। 


इतना कहकर रश्मि अलका के घर चली गई। 


क्या बात है रश्मि तेरी तबीयत तो ठीक है ना... आज तु मेरे घर के अंदर कैसे.... हर बार तो बाहर से ही चली जाती है। खैर अभी आ ही गई है तो बैठ मैं तेरे लिए कुछ खाने को लाती हूँ। 


अलका जा ही रही थी कि रश्मि ने उसकी कलाई पकड़ ली और कहा नही अलका मुझे कुछ नहीं चाहिए, मुझे तुझसे जरूरी बात करनी है। 


इतने में अलका के पिता जी बाहर से कुछ घर का सामान लेकर घर पर आए और रश्मि को देख कर चोंक गए.....। 

क्या बात है रश्मि बेटा आज तु हमारे घर के भीतर....? 

रश्मि उनको देखते ही उनके पांव छुने के लिए उठीं। 


खुश रहो बेटा.....। अलका के पिता जी ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा......। 


पापा हम दोनों मन्दिर जाकर आतें है। 

इतना कहकर अलका ने रश्मि का हाथ पकड़ा और उसे बाहर ले आई....। 


अब बोल क्या बात है .....तु इतनी परेशान क्युं है। घर पर सब ठीक तो है ना.....! 
इतनी चुप चुप क्यों है....। क्या बात है....। बता मुझे। 


अलका पहले हम मंदिर चलते हैं, वहाँ बैठ कर तुझे सब बताती हूँ। 


ठीक है चल। 


दोनों पास ही बने साईं बाबा के मंदिर पहुंचती है। 
(रश्मि बचपन से ही साईं बाबा को बहुत मानती थी। वो जब भी उदास होती तब मन्दिर की सिढि़यो पर आकर बैठ जाती।) 


मन्दिर में आकर दोनों अंदर जाकर हाथ जोड़कर, आंखें बंद करके प्रार्थना करने लगी। 


रश्मि मन ही मन में - बाबा जी, अंजान शहर में अकेले जा रहीं हूँ ......प्लीज मेरी रक्षा करना और जल्द से जल्द मम्मी को भी ठीक कर देना....। प्लीज बाबा जी मम्मी के ऊपर अपनी दया रखना.....। मेरे परिवार पर अपनी महर करना बाबा जी....।


रश्मि ने आंखें खोली तो अलका वहाँ नहीं थी ......वो घबरा गई ओर जल्दी से उठकर इधर उधर अलका को ढुंढ़ने लगी.....। उसे अलका कहीं नजर नहीं आई तो वो घबरा कर सिढि़यो से नीचे आने लगी.....। घबराहट की वजह से अचानक उसका बैलेंस बिगड़ गया और वो गिरने ही वाली थी कि उसके पास खड़े व्यक्ति ने उसकी कलाई पकड़ ली और अपनी तरफ खींच लिया......। ये सब इतना जल्दी हुआ कि रश्मि ने डर के मारे अपनी आंखें बंद कर ली थी......। 

रश्मि ने जैसे ही आंखें खोल कर देखा तो वो बुत बनकर देखती  ही रह गई......। 

वो व्यक्ति कोई ओर नही रोहित था। रश्मि को ऐसे बुत बनकर देखते हुए रोहित मुस्कुराते हुए बोला... मैं हमेशा के लिए ऐसे खड़ा नहीं रह सकता .....प्लीज उठ जाईए......। 

रश्मि सकपका गई और खडी़ होकर जाने लगी....।
 
तभी रोहित ने पीछे से बोला... आपके यहां थैंक्स कहने की मनाई है क्या.....? लगता हैं आपके पेरेंट्स ने सिखाया नहीं हैं आपको....। 

रश्मि ने अपनी हथेली अपने सर पर मारी ओर वापस मुड़कर बोली.. थैक्यु सर....। थैंक्यू सो मच..... बट प्लीज मेरे पेरेंट्स के बारे में कभी कुछ मत बोलिएगा... आइ रिक्वेस्ट यू...। 



आप माफी मांग रहीं हैं या.... धमकी दे रहीं हैं....। 
रोहित मुस्कुरा कर बोला...। 


लेकिन इस बार रश्मि कुछ नहीं बोलीं.... वो अलका को लेकर परेशान थीं.... इसलिए वो तेज़ कदमों से वहां से चल दी...। 



# कहानीकार प्रतियोगिता

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आखिर बार बार दोनों की टकराहट क्या रंग लाएगी..! 
ओर अलका कहाँ थीं.... 
जानने के लिए इंतजार किजिए अगले भाग का....। 


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5 Comments

madhura

16-Aug-2023 06:23 PM

Good

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hema mohril

16-Aug-2023 05:04 PM

Good

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Babita patel

16-Aug-2023 04:40 PM

Good

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